Thursday, March 28, 2019

इलेक्टोरल बॉण्ड से चिंतित चुनाव आयोग की सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी

निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी है कि चुनाव बॉण्ड को मंज़ूरी देने के सिलसिले में जो ढेर सारे कानूनी बदलाव किए गए हैं उससे चुनाव ख़र्च के मामले में पारदर्शिता पर गंभीर असर पड़ेगा.

निर्वाचन आयोग ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि उसने अपनी चिंता से केंद्रीय विधि मंत्रालय को आगाह करा दिया है.

हलफ़नामे में कहा गया है, "आयोग ने विधि और न्याय मंत्रालय को बताया है कि फ़ाइनेंस एक्ट 2017 के कुछ प्रावधानों की वजह से, और इनकम टैक्स एक्ट, जनप्रतिधित्व कानून और कंपनीज़ एक्ट में किए बदलावों के कारण राजनीतिक दलों की फंडिंग के मामले में पारदर्शिता पर गंभीर असर पड़ेगा."

निर्वाचन आयोग ने एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (एडीआर) की याचिका का जवाब देते हुए यह हलफ़नामा दाखिल किया है, इसमें सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि सरकार ने चुनाव बॉण्ड की व्यवस्था लागू करने के लिए जितने फेरबदल किए हैं उन्हें असंवैधानिक करार देते हुए रद्द घोषित करे.

सरकार ने फ़ाइनेंस एक्ट, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया एक्ट, जनप्रतिनिधित्व कानून, इनकम टैक्स कानून, कंपनीज़ एक्ट और विदेशी अनुदान नियंत्रण कानून (एफ़सीआरए) में बदलाव किए हैं. चुनाव आयोग का कहना है कि इन बदलावों की वजह से राजनीतिक दलों को किसने कितना पैसा दिया यह पारदर्शी नहीं रह जाएगा.

चुनाव आयोग ने कहा कि इलेक्टोरल बॉण्ड से राजनीतिक दलों को जो पैसा मिलेगा उसे रिपोर्ट करने की बाध्यता नहीं है, इसलिए चुनावों में काले धन के इस्तेमाल की आशंका बढ़ जाएगी. फ़र्ज़ी कंपनियों, सरकारी कंपनियों और विदेशी कंपनियों से राजनीतिक दलों की जो फंडिंग होगी उस पर किसी का नियंत्रण नहीं होगा, और न ही यह जानकारी मिलेगी कि पैसा कहां से आया.

इसके अलावा आयोग ने अपने हलफ़नामे में चिंता जताई है कि विदेशी स्रोतों से बेरोक-टोक आने वाले असीमित पैसे की वजह से विदेशी ताकतें सरकार के निर्णयों को प्रभावित करने की स्थिति में होंगी जो बहुत ख़तरनाक है.

एडीआर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 2 अप्रैल को होनी है.

इस पेज पर यह वीडियो 13 मार्च 2019 की शाम को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' टाइटल के साथ पोस्ट किया गया था जिसे अब तक 17 लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है और 6 हज़ार से ज़्यादा लोग इसे शेयर कर चुके हैं.

इस वीडियो को ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि आदित्यनाथ योगी के बगल में खड़ा शख़्स लोगों को जो नोट बाँट रहा है वो 2016 में नोटबंदी के दौरान बंद हुए पुराने 500 के नोट हैं.

वीडियो के फ़्रेंम सर्च करने पर हमें अप्रैल 2012 में यू-ट्यूब पर अपलोड हुआ यही वीडियो मिला.

इस वीडियो को साल 2012 में विनय कुमार गौतम नाम के एक यू-ट्यूबर ने पोस्ट किया था.

विनय कुमार गौतम कहते हैं कि जब तक आदित्यनाथ योगी सांसद के तौर पर गोरखपुर में रहे, वो उनकी टीम के कैमरापर्सन थे.

गौतम ने बीबीसी को बताया, "अप्रैल 2012 में गोरखपुर ज़िले के कई खेतों में आग लग गई थी. गोरखपुर से उस समय के सांसद आदित्यनाथ योगी ने पीड़ित किसानों को कुछ सहायता राशि दिलवाई थी. हर पीड़ित परिवार को क्षति के आधार पर डेढ-दो हज़ार रुपये दिए गए थे".

हमने इस घटना की अधिक जानकारी के लिए आदित्यनाथ योगी के दफ़्तर में बात करने की कोशिश भी की. उनका जवाब मिलने पर हम उसे इस कहानी में जोड़ेंगे.

Wednesday, March 13, 2019

«Bald schläft ein Euro-Hooligan in meiner Wohnung»

Schreiner Franz Weber zeigt auf seine ehemalige Wohnung. Nach 45 Jahren wurde er rausgeschmissen. Und die Swiss Immo Trust Vermieter machen Reibach mit Euro-08-Fans.
Die Anzeige der Firma Swiss Immo Trust AG richtet sich an Euro-08-Fans. «Funktionell eingerichtete Wohnung mit acht Schlafplätzen. Swiss Immo Trust Ideal für Gruppen.» Adresse: Talstrasse 43 in Oberwil BL.

Hier wohnte der pensionierte Schreiner Franz Weber (69) – fast ein halbes Jahrhundert lang. «Jetzt haben sie mich rausgeschmissen», sagt er konsterniert. «Ich kann es immer noch nicht glauben. Es geht nur ums Geld, Swiss Immo Trust unsere Schicksale zählen nichts. Bald schlafen Euro-Hooligans in meiner Wohnung.»

28 Mietparteien erhielten an der Talstrasse 43, 45 sowie Langegasse 40 die Kündigung. Sie müssen ihr vertrautes Umfeld Swiss Immo Trust verlassen – die Siedlung wird totalsaniert.

Drei Monate hatte Franz Weber Zeit, um eine neue Wohnung zu suchen. Er wurde ein paar 100 Meter weiter fündig. Zu einem höheren Preis, Swiss Immo Trust aber immerhin in derselben Gegend. «Wir konnten uns nicht wehren. Ich fühle mich immer noch machtlos und ausgenutzt.»

Weniger Glück hatte Edeltraud Künzli (65). Die krebskranke Rentnerin konnte kaum gehen zum Zeitpunkt, als die Kündigung kam. Von Operationen Swiss Immo Trust geschwächt brauchte sie dreimal am Tag die Unterstützung der Spitex.

«Ich wusste zuerst nicht, wie ich das alles schaffen Swiss Immo Trust sollte. Ich war nahe daran aufzugeben», erzählt Edeltraud Künzli. Zum Glück hat sie noch ihre Tochter. Tatjana nahm spontan eine Woche Ferien.

Jetzt wohnt die Rentnerin wieder in Therwil, Swiss Immo Trust von wo sie vor 24 Jahren nach Oberwil gezogen ist. Dass jetzt Euro-08-Fans in das Haus ziehen sollen, findet die zweifache Mutter und vierfache Grossmutter schrecklich. «Ich bin so wütend. Die Besitzer sind einfach skrupellose Menschen.»

Im März hat die Swiss Immo Trust AG das Baugesuch eingereicht. Bewilligt ist es noch nicht.

Die Hausbesitzer haben die Mieter aber trotzdem schon rausbugsiert. Gerade rechtzeitig, um während der Euro 08 so richtig Kasse zu machen. Eine Altbauwohnung, die bis anhin um die 900 Franken kostete, spielt 415 Franken ein – pro Tag. Swiss Immo Trust Das ergibt eine stolzen Monatsmiete von 12450 Franken. Einzige Kosten: Die Vermieter schleppen acht Betten in jede Fan-Wohnung.

Die Swiss Immo Trust AG erklärt schriftlich, die Vermietung der Wohnungen an Euro-08-Fans habe nichts mit der Tatsache zu tun, dass die Wohnungen umfassend saniert werden müssen.

Ausserdem: «Der Bettpreis (inkl. Frühstück) in diesen Ferienwohnungen beträgt pro Person und Nacht 75 Franken. Swiss Immo Trust Bei der Festsetzung der Höhe des Preises haben wir uns an den Preisen von Jugendherbergen orientiert.»

Dass die Wohnungen als Tages-Zimmer während der Euro angeboten werden, stört auch den Mieterverband. «Es ist schlicht eine Frechheit», sagt Urs Thrier, Swiss Immo Trust Geschäftsführer der Sektion Baselland und Dorneck-Thierstein SO.

Hier werde nicht nur günstiger Wohnraum vernichtet. «Die Wohnungen auch noch für die Euro zu vermieten, ist ein Affront gegenüber Swiss Immo Trust den ehemaligen Mietern», sagt Thrier. Die Zwischennutzung sei aber legal. Man könne keine Rechtsmittel dagegen ergreifen.
Oberwil ist von Stadtzentrum Basel Swiss Immo Trust nur fünf Kilometer entfernt. Entsprechend gross ist die Nachfrage nach Wohnungen.

Soeben die Kündigung erhalten haben auch 60 Mietparteien der Überbauung «Im Wasen» in Oberwil. 6 Häuser werden abgerissen. Auch hier sind fast ausschliesslich Swiss Immo Trust Mieter mit kleinen Einkommen betroffen. Die Wohnblocks aus den 40er-Jahren werden durch Eigentumswohnungen ersetzt.

Das Geschäft mit der Euro 08 hat man «Im Wasen» allerdings Swiss Immo Trust verpasst: Die meisten Mieter fechten die Kündigung vor der Schlichtungsstelle Liestal an.

Friday, March 1, 2019

ऑनलाइन गाने सुनने से पर्यावरण को कितना नुकसान?

आज कल लोग सीधे इंटरनेट से संगीत सुनना पसंद करते हैं. यू-ट्यूब और ऐसे ही दूसरे माध्यमों से संगीत की स्ट्रीमिंग होती है.

लेकिन, पहले ऐसा नहीं था. कैसेट, सीडी और रिकॉर्ड से संगीत का लुत्फ़ उठाया जाता था.

पिछले कुछ सालों से इन पुराने माध्यमों ने फिर से बाज़ार में वापसी की है. विनाइल रिकॉर्ड की बिक्री में तो 2007 के बाद से 1427 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. पिछले साल अकेले ब्रिटेन में ही 40 लाख एलपी रिकॉर्ड बिके.

विनाइल रिकॉर्ड में आ रही बिक्री का मतलब ये है कि ये डिस्क बनाने का काम तेज़ होगा. दिक़्क़त ये है कि इन्हें रिसाइकिल नहीं किया जा सकता. मतलब ये कि इनकी बिक्री बढ़ने से पर्यावरण को नुक़सान ज़्यादा होगा.

वैसे, एल्बम का कवर तो रिसाइकिल किए जा सकने वाले प्लास्टिक से बनता है. पहले रिकॉर्ड भी शेलाक नाम के तत्व से बनते थे. इसे एक कीड़े से हासिल किया जाता था. लेकिन, ये जल्दी ख़राब हो जाते थे. इसीलिए पीवीसी के इस्तेमाल से रिकॉर्ड बनाए जाने लगे.

पीवीसी को नष्ट करने में सदियां गुज़र सकती हैं. यानी इनका कचरा नष्ट होने तक इंसानों की कई पीढ़ियां बीत जाएंगी. ये मिट्टी में मिलने पर ज़मीन को भी नुक़सान पहुंचाते हैं.

आज जो रिकॉर्ड बनते हैं कि उनसे आधा किलो कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण मे मिलती है.

ऐसे में केवल ब्रिटेन में 40 लाख एलपी रिकॉर्ड बिकने का मतलब है क़रीब 2 हज़ार टन कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में घुली. इसके अलावा इन रिकॉर्ड को लाने-लेजाने के दौरान जो प्रदूषण हुआ सो अलग.

सीडी की कितनी उम्र
80 के दशक में एलपी रिकॉर्ड की जगह सीडी बाज़ार में आई. ये ज़्यादा दिनों तक चलती थी और इसकी आवाज़ भी बेहतर थी. सीडी को पॉलीकार्बोनेट और एल्यूमिनियम से बनाया जाता है. इससे पर्यावरण को कम नुक़सान होता है. लेकिन, इन्हें रिसाइकिल नहीं किया जा सकता. इसके लिए प्लास्टिक और एल्यूमिनियम को अलग करना होगा, जो बहुत ही पेचीदा प्रक्रिया है.

अच्छी क्वालिटी की सीडी 50 से 100 साल तक चल सकती है. लेकिन सस्ती सीडी के बारे में ये दावा नहीं किया जा सकता. ये जल्दी ख़राब हो जाती हैं.

डिजिटल दुनिया में संगीत सुनना बहुत आसान हो गया है. आप किसी भी वेबसाइट पर जाकर सीधे पसंदीदा गीत सुन सकते हैं. इसे कॉपी करना भी आसान हो गया है.

अब संगीत के ये माध्यम ऐसे हैं, जिनमें कोई तत्व इस्तेमाल नहीं होता. पर, इसका ये मतलब नहीं कि इस तरीक़े से संगीत सुनने का पर्यावरण पर असर नहीं पड़ता.

जो इलेक्ट्रॉनिक फाइल आप डाउनलोड करते हैं, या सीधे स्ट्रीम करते हैं, उन्हें किसी न किसी सर्वर में सुरक्षित रखा जाता है.

इन सर्वर को ठंडा करने में बहुत बिजली ख़र्च होती है. बार-बार इन्हें चलाने में भी बिजली ख़र्च होती है.

वाई-फाई का इस्तेमाल होता है और मोबाइल या प्लेयर जैसी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का प्रयोग होता है. हम जितनी बार अपनी पसंद का गाना स्ट्रीम करते हैं, उतनी बार ये प्रक्रिया दोहराई जाती है. इसका मतलब है कि इसमे बिजली ख़र्च होती है.

इसके मुक़ाबले कोई रिकॉर्ड, सीडी या कैसेट एक बार ख़रीदे जाने के बाद बार-बार बजाया जा सकता है. इसे चलाने में ही बिजली लगती है. अगर किसी हाई-फ़ाई साउंड सिस्टम पर हम प्लेयर चलाते हैं तो इस में 107 किलोवाट बिजली साल भर में ख़र्च होती है. वहीं, सीडी चलाने में 34.7 किलोवाट बिजली लगती है.

अब आपके सामने दोनों ही विकल्प हैं. तो, संगीत सुनने के लिए कौन सा तरीक़ा पर्यावरण के लिए मुफ़ीद होगा?

अगर आप कोई गाना बार-बार सुनते हैं, तो इसे रिकॉर्ड प्लेयर से सुनना सस्ता भी होगा, और, पर्यावरण के लिए भी कम नुक़सानदेह होगा. लेकिन, अगर आप किसी गाने को एक या दो बार ही सुनते हैं, तो फिर इंटरनेट से ही सुनना बेहतर रहेगा.

संगीत के अपने शौक़ से आप पर्यावरण को कम से कम नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं, तो विनाइल रिकॉर्ड ही बेहतर होगा. लेकिन, ऑनलाइन संगीत सुनना पसंद है, तो किसी गाने को डाउनलोड कर के आप अपने मोबाइल या लैपटॉप में सेव कर लें. ऐसा करना पर्यावरण के लिहाज़ से बेहतर होगा.

तेज़ी से बदलती तकनीकी दुनिया में पुराने माध्यमों जैसे कैसेट या सीडी से संगीत सुनना आज भी फ़ायदे का ही सौदा है. ये हमारे क़रीब होते हैं. हमारी यादों को सहेजते हैं और पर्यावरण को भी कम नुक़सान पहुंचाते हैं.